जायें कहाँ
मैं कमजोर नहीं हूँ.... जिसके कारण कमजोर बना था, अब वह इतना दूर है की कमजोर होने का कारण ही नहीं है.
Wednesday, June 16, 2010
परदेश
काँटों से गुजर जाना, शोलौं से निकल जाना,
जब उसकी बस्ती में जाना, तो संभल जाना.
और भीगी हुई दो आंखे, हर रोज ये कहती है,
परदेश अगर तुमको,जाना है तो कल जाना...
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