हम उनसे मुहब्बत करें भी तो क्यों करें,
हम उनकी यादों मैं खोये भी तो क्यों खोयें।।
उन्हें तो गुमान है अपने हुस्न पर,
हम उस हुस्न को देख कर जियें भी तो क्यों जियें।।
बहुत तड़पा हूँ उनकी यादों मैं,
बहुत रोया हूँ उनकी जुदाई में।।
वो तो खुश है अपनी महफिल में तो अपने लोगों में,
अब हम उन्हें अपना कहें भी तो क्यों कहें,
हम उनकी याद मैं रोये भी तो क्यों रोये।।।।