Wednesday, August 25, 2010

इतनी बड़ी धरती हमारी


इतनी बड़ी धरती हमारी
और छोटे से हम....

मानव, पशु, और पक्षी,
लाखों जीवों का यह घर..
धरती पर, धरती के नीचे,
कुछ रहते धरती के उपर |
सब में जीवन, सब हैं बराबर,
नहीं है कोई कम..
इतनी बड़ी धरती हमारी,
और छोटे से हम ||

रंग-बिरंगे, कीट , पतंगे,
माघ, गगन पंछी मंडराते |
दाने दो ही चुगते लेकिन,
मीठे, लंबे गीत सुनाते ||

डगमग चलते, नाचा करते
खुश रहते हैं वो हर दम |
इतनी बड़ी धरती हमारी,
और छोटे से हम |

कई, घास, पौधे नन्हे,
जीवन रक्षक वृक्ष हुमारे..
रोटी. दाल, सब्ज़ी, फल,
जीवन के ये श्रोत हुमारे |
जब तक भूमि हरी रहेगी,
तब तक स्वस्थ रहेंगे हम,|
इंतनी बड़ी धरती हमारी.....

Tuesday, August 24, 2010

बहाने

रूठी तन्हाइयों में,दर्द की बाहों में सिमटे,
कहीं मंज़िल हम तलाश रहे है |
लवों पे तीखी शराब को चूमे,
हम नशे मे झूम रहे है ||

क्या कहती है तू ज़िंदगी,
सब सहती है तू ज़िंदगी,
थम थम के चलती है ये धडकनें |
हम अचम्भित है की,
रुकती क्यों नही ये धडकनें,
कही हमने ज़ायदा तो नही पी ली है ||

आंखों से छलकते है अंगारे,
ये आँखें सदा के लिए,
बंद होते क्यों नही |
हम जी रहे है बिना सहारे,
कहीं यही तो जीना नही,
हर जाम से लगता है,
दर्द हलके हो रहे है ||

वो कहते है,
इतनी पिया ना करो |
घुट घुट के यों जीया ना करो,
हमसे बर्दास्त नहीं होती ये जुदाई ,
पीते रहेंगे तो जीते रहेंगे,
खुद को पल पल यही दिलासा दे रहे है.........

Friday, August 20, 2010

मंजिल

मंजिल ठहराव नहीं एक पड़ाव है,
क्योंकि जिंदगी कभी धूप तो कभी छाव है |
यात्रा कभी होती नहीं पूरी,
इच्छा सदा रहती अधूरी ||

तृप्ति कि कामना,
कराती लक्ष्यों से सामना |
वक्त की चाल पे,
ठिकाना ढूढता हर कोई ||

राही राह मैं बढता,
आशा के लिए |
तब जाकर नई सुबह हुई,
कुछ पल ठहरा वहां ||

तभी बदलते वक्त की,
पुकार हुई आगे बढ़ो |
अभी बहुत वक्त है,
यहाँ तो बस शुरुआत है .... ||

मंजिल कि तलाश मैं भटकते हए यारो,

दूर कि रोशनी से आश लगाये रखना |

यूं तो कई मोड़ आते है सफ़र के दरमियाँ,

तुम कारवां बनकर साथ निभाए रखना ||

Tuesday, August 10, 2010

निमत्रण

प्रिय कलम,
आशा है की तुम ठीक - ठाक होगे, यहाँ पर सभी ठीक है | आज पत्र लिखने का खास कारण यह है की हमारे मित्रगण किताब की हालत ठीक नहीं है, दिन - प्रतिदिन वह बिगडती जा रही है. | यह सोचकर की कही किताब का अस्तित्व ही समाप्त न हो जाय इसलिए मुझे उनके भाई कापी साहब ने उसको एक बार पुनः लिखने के लिए आमंत्रित किया है | इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए मुझे आपकी सहायता की अति आवश्कता है | यहाँ पर अक्षर और शब्द तुम्हें बहुत ही याद करते है, कभी - कभी तो इतना याद करते है कि मुझसे ही रूठ जाते है | कलम भाई इन बच्चों का दिल रखने के लिए और मुझे सोपें गए कार्य को पूरा करने के लिए तुम एक बार यहाँ आने का कष्ट करना |
मुझे आपका हर पल इन्तजार रहेगा |

तुम्हार दोस्त:
स्याही राम


Monday, August 9, 2010

तन्हाई

मानव एक सरल स्वभाव वाला,
अंगारों पर चलता हुआ.
झुक झुक करसुर्ख आँखों मैं,
कुछ सपने देख रहा था.
उसका ह्रदय आवाज कर रहा था,
शायद वह कुछ याद कर रहा था.
चेहरे पर चमकते हुए दो मोती के बिन्द,
उसकी पीड़ा जैसे बता रही थी.
दर्द था उसकी आहों पर,
एक कसक थी उसकी जुबा पर.
वह उसे कहना नहीं चाह रहा था,
शायद वह खुद से आज तक अंजान था.
इस अनजाने पन से वह डरता था घबराता था,
शायद वह अपने आप से लड़ रहा था......