Monday, August 9, 2010

तन्हाई

मानव एक सरल स्वभाव वाला,
अंगारों पर चलता हुआ.
झुक झुक करसुर्ख आँखों मैं,
कुछ सपने देख रहा था.
उसका ह्रदय आवाज कर रहा था,
शायद वह कुछ याद कर रहा था.
चेहरे पर चमकते हुए दो मोती के बिन्द,
उसकी पीड़ा जैसे बता रही थी.
दर्द था उसकी आहों पर,
एक कसक थी उसकी जुबा पर.
वह उसे कहना नहीं चाह रहा था,
शायद वह खुद से आज तक अंजान था.
इस अनजाने पन से वह डरता था घबराता था,
शायद वह अपने आप से लड़ रहा था......

4 comments:

  1. आज़ादी के एहसास के कुछ पल पहले आपका चिटठा-जगत में पदार्पण सफल रहे. आप अच्छा लिखें और एक सच्चे, अच्छे और इमानदारी भरे लेखन समाज के हम-राही बनें..

    सलीम ख़ान
    9838659380

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  2. Tanhai dil ko baha le gayi, haaye

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  3. हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
    कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें

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  4. बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

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