Friday, August 20, 2010

मंजिल

मंजिल ठहराव नहीं एक पड़ाव है,
क्योंकि जिंदगी कभी धूप तो कभी छाव है |
यात्रा कभी होती नहीं पूरी,
इच्छा सदा रहती अधूरी ||

तृप्ति कि कामना,
कराती लक्ष्यों से सामना |
वक्त की चाल पे,
ठिकाना ढूढता हर कोई ||

राही राह मैं बढता,
आशा के लिए |
तब जाकर नई सुबह हुई,
कुछ पल ठहरा वहां ||

तभी बदलते वक्त की,
पुकार हुई आगे बढ़ो |
अभी बहुत वक्त है,
यहाँ तो बस शुरुआत है .... ||

मंजिल कि तलाश मैं भटकते हए यारो,

दूर कि रोशनी से आश लगाये रखना |

यूं तो कई मोड़ आते है सफ़र के दरमियाँ,

तुम कारवां बनकर साथ निभाए रखना ||

No comments:

Post a Comment